ट्रांसफॉर्मर एक अति उपयोगी विद्युतीय उपकरण है, इसके बिना विद्युत प्रणाली की कल्पना करना असम्भव है, और सायद इसीलिए इसे विद्युत प्रणाली की रीढ़ कहीं जाती है। ट्रांसफार्मर एक इलेक्ट्रोस्टैटिक उपकरण है जिसका उपयोग आवृत्ति में परिवर्तन के बिना दो विद्युत सर्किटों के पारस्परिक प्रेरण द्वारा विद्युत ऊर्जा (वोल्टेज) को एक सर्किट से दूसरे में स्थानांतरित करने के लिए किया जाता है, जो विद्युत चुम्बकीय प्रेरण (इलेकट्रोमैगनेटिक इंडक्शन) के सिद्धांत पर काम करता है। लोड की आवश्यकताओं के आधार पर ऐसी सर्किट में ट्रांसफार्मर के उपयोग से वोल्टेज और धाराओं को कम करना या बढ़ाना संभव है। ट्रांसफॉर्मर का उपयोग करके हम वोल्टेज स्तर को आसानी से घटा या बढ़ा सकते है । ट्रांसफार्मर को उसके कार्य के आधार पर अनेकों विभागों में बाटा गया है, आजकल हमारे घरों में जो भी इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण जैसे कि टीवी, पर्सनल कंप्यूटर, सीडी / डीवीडी प्लेयर और अन्य उपकरणों में इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफॉर्मर का उपयोग होता है।
तथा पॉवर ट्रांसफ़ॉर्मर शब्द को उच्च शक्ति और वोल्टेज रेटिंग वाले ट्रांसफार्मर में संदर्भित किया जाता है। वोल्टेज के स्तर को बढ़ाने या घटाने के लिए इनका उपयोग होता है बड़े पैमाने पर इन ट्रांसफॉर्मर का उपयोग विद्युत उत्पादन केंद्र, विद्युत वितरण केन्द्र, पारेषण, वितरण और उपयोगिता प्रणालियों में किया जाता है। तो चलिए इनकी बनावट ओर कार्य प्रणाली के बारे में विस्तार से जानते हैं।
परिभाषा :
वह विद्युतीय उपकरण जिसका उपयोग करके हम विद्युत के वॉल्टेज स्तर (voltage leave) को बिना उसकी आवृत (friquency) को बदले बढ़ा या घटा सकते है उसे ट्रांसफॉर्मर कहते है ।
अथवा
जिस उपकरण की सहायता से हम वॉल्टेज के स्तर को बिना आवृति को बदले (change) बढ़ा या घटा सकते है उस उपकरण को ट्रांसफॉर्मर कहते है ।
सिद्धांत :
ट्रांसफॉर्मर इलेकट्रोमैगनेटिक इंडक्शन (electromagnetic induction) के सिद्धांत पर काम करता है ।
बनावट और कार्य प्रणाली :
ट्रांसफॉर्मर की बनावट को आप नीचे दी गई चित्र मे देख सकते है । इसमें उचित इन्सुलेशन के साथ एक मैग्नटिक कोर ली जाती है जो वाइंडिंग के बीच एक चुंबकीय पथ प्रदान करता हैं, इसके दोनों ओर तांबे के तार को लपेट दिया जाता है जिसे कोइल या वाइंडिंग कहते है । चित्र मे दर्शाए अनुसार इसमें दो वाइंडिंग है जिसमें से एक को प्रमारी (जिसमें सप्लाई दी जाती है) अर दूसरे को सेकेंडरी वाइंडिंग (जहा से आउपुट मिलता है) कहते है।
प्राइमरी वाइंडिंग मे जब ac सप्लाई दी जाती है तब मैगनेटिक कोर मे अल्टरनेट फलक्स उत्पन होती है, वह फलक्स दूसरी ओर लपेटी गई वाइंडिंग के साथ लिंक करती है जिससे दूसरी वाइंडिंग मे फेराडे के नियम के अनुसार विद्यु धारा प्रेरित होती है । प्रेरित धारा का मान वाइंडिंग के टर्न पर निर्भर करता है।
उपयोग :
ट्रांसफॉर्मर का उपयोग पॉवर सिस्टम (power system) में ज्यादा किया जाता है । क्योंकि पॉवर जेनरेशन स्टेशन में पॉवर 11kv पर उत्पन्न होता है जिससे कारण उसका वोल्टेज 11kv से 25kv के बीच में होता है । लेकिन इस वोल्टेज वोल्टेज पर पॉवर को ट्रांसमिशन लाइन के द्वारा अधिक दूरी पर भेजने से पॉवर की क्षति (loss) ज्यादा होता है, जिसके के कारण उत्पन्न किए गए विद्युत के वोल्टेज को ट्रांसफॉर्मर के द्वारा बढ़ाया जाता है।
पॉवर उत्पन्न करने वाले जगहों पर स्टेप अप प्रकार के ट्रांसफॉर्मर उपयोग होता है जो कि वोल्टेज को बढ़ने का काम करता है, जिससे ट्रांसमिशन लॉस को काम किया जा सके और आसानी से विद्युत को एक जगह से दूसरी जगह पर भेज सके।
डिस्ट्रीब्यूशन सबस्टेशन पर स्टेप डाउन प्रकार के ट्रांसफॉर्मर का उपयोग होता है, जिससे वोल्टेज स्तर को कम किया जा सके ।
ट्रांसफॉर्मर के प्रकार :
(A) सप्लाई के आधार पर
(१) सिंगल फेस ट्रांसफॉर्मर
(२) थ्री फेस ट्रांसफॉर्मर
(B) बनावट के आधार पर
(१) कोर टाईप ट्रांसफॉर्मर
(२) शेल टाईप ट्रांसफॉर्मर
(३) बेरी टाईप ट्रांसफॉर्मर
(C) KVA रेटिंग के आधार पर
(१) पॉवर ट्रांसफॉर्मर
(२) डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर
(D उपयोग के आधार पर
(१) फर्नस ट्रांसफॉर्मर
(२) रेक्टिफायर ट्रांसफॉर्मर
(३) वेल्डिंग ट्रांसफॉर्मर
(४) टेस्टिंग ट्रांसफॉर्मर
(५) रेगुलेटिंग ट्रांसफॉर्मर
(६) HV टेस्टिंग ट्रांसफॉर्मर
(७) SC टेस्टिंग ट्रांसफॉर्मर
(८) हाई फ्रीक्वेंसी ट्रांसफॉर्मर
(९) माइनिंग ट्रांसफॉर्मर
(१०) करंट ट्रांसफॉर्मर
(११) वोल्टेज ट्रांसफॉर्मर
(१२) कन्वर्टर ट्रांसफॉर्मर
(१३) ट्रेक्शन ट्रांसफॉर्मर
(१४) कम्युनिकेशन कंट्रोल, डॉमेस्टिक ट्रांसफॉर्मर
(१५) फेस चेंजिंग ट्रांसफॉर्मर
(१६) डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर
(१७) अर्थिंग ट्रांसफॉर्मर
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